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हिंदी कार्यपत्रिका (Hindi worksheet)- लिंग

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गणतंत्र दिवस कविता

देश के प्रत्येक नागरिक को गणतंत्र दिवस की बधाई। गणतंत्र दिवस के उपलक्ष्य में मैं प्रस्तुत कर रही हूँ एक कविता-  जल रही थी चिंगारी जाने कितने बरसों से  कर रहे थे यत्न वीर जाने कितने अरसों से  आँखें क्रुद्ध, भीषण युद्ध, ब्रिटिश विरुद्ध जाने कितनी बार हुए.... माताओं की गोदी सूनी कर  जाने कितने बेटे संहार हुए  वीरों के बलिदानों से माँ भारती  बेड़ियाँ मुक्त हुई  फिर केसरिया-सफ़ेद-हरा लहरा  माँ भारती तिरंगा युक्त हुई  स्वतंत्र हुई, स्वराज्य मिला किंतु  स्वशासन अभी अधूरा था  जिसे 2 वर्ष, 11 माह 18 दिन में  अम्बेडकर जी ने किया पूरा था  फिर संविधान लागू कर लोकतंत्र का 'गुंजन' हुआ  आज इसी दिन गणराज्य बना आज ही गणतंत्र हुआ आज इसी दिन गणराज्य बना आज ही गणतंत्र हुआ    सभी को गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएँ तथा सभी वीरों/ शहीदों को श्रद्धांजलि अन्य कविताएँ IG- poetry_by_heartt twitter

पत्र- औपचारिक तथा अनौपचारिक

औपचारिक पत्र  1. बुखार के कारण विद्यालय से 4 दिन के अवकाश के लिए अवकाश पत्र।  सेवा में  प्रधानाचार्या जी वेंकटेश्वर सिग्नेचर स्कूल रायपुर  छत्तीसगढ़  493441 25-08-2022 विषय- चार दिन के अवकाश हेतु।  आदरणीया महोदया, मेरा नाम नेहा शर्मा है। मैं कक्षा 3 में पढ़ती हूँ। मुझे कुछ दिनों से बुखार है। डॉक्टर ने मुझे आराम करने की सलाह दी है। जिसके लिए मुझे विद्यालय से अवकाश की आवश्यकता है।  मैं आपको आश्वासन देती हूँ कि मैं अवकाश के बाद शीघ्र ही अपना कार्य पूरा कर लूँगी।अतः मुझे 26 अगस्त 2022 से 29 अगस्त 2022 (चार दिन) का अवकाश देने की कृपा करें। आपकी अति कृपा होगी।  सधन्यवाद  आपकी छात्रा  नेहा शर्मा  कक्षा 3 अनौपचारिक पत्र  अपने भाई की शादी में बुलाने के लिए अपने मित्र को निमंत्रण पत्र  44/808 कमल विहार  नई दिल्ली  प्रिय मित्र,               कैसे हो? तथा घर में सब कैसे हैं? मैं सपरिवार कुशल से हूँ और आशा करता हूँ कि तुम भी सपरिवार सकुशल होंगे। मित्र अगले महीने की 25 तारीख को भैया का विवाह है। मैं चाहता हूँ इस उत्सव में तुम अपने परिवार के साथ सम्मिलित हो। तुम आओगे तो मुझे अच्छा लगेगा। हमारे अन्य म

भाईचारा। कविता।

भाईचारा  ऐसा सुंदर, ऐसा प्यारा देश हमारा हो  मिल जुल रहते हों सब, आपस में भाईचारा हो  अलग होते हुए भी सबमें  एकता की भावना समाई हो  जब नन्हे नंदू के घर दिवाली आए  तो भोले हामिद के घर भी मिठाई हो  मंदिर-मस्जिद-गिरजाघर-गुरुद्वारों ने  हमारा हर दिन, हर सवेरा सँवारा हो  मिल जुल रहते हों सब, आपस में भाईचारा हो  अगर कभी विद्यालय में छोटा चंदन  खाना लाना भूल जाता हो  अच्छी सुगंध, मीठे पकवानों वाला  दोस्तों का टिफ़िन पाता हो  हर छोटी-बड़ी चुनौतियों में  सुझाव कभी मेरा, कभी तुम्हारा हो  मिल जुल रहते हों सब, आपस में भाईचारा हो  बाज़ार से आते-आते कभी पापा  भारी झोला-टोकरी लाते हों  उनकी मदद करने को वहाँ  सब प्यारे बच्चे चले आते हों  रास्ते में देख प्यासा किसी को  पानी पिला खुशियों का खुलता पिटारा हो  मिल जुल रहते हों सब, आपस में भाईचारा हो  Instagram:gunjanrajput youtube:gunjanrajput pratilipi:gunjanrajput twitter:gunjanrajput

मेरी गूँज (गुंजन राजपूत)

  मेरी गूँज (उपन्यास/NOVEL) 'मेरी गूँज' एक ऐसा उपन्यास जिसे पढ़ने वाला लगभग हर व्यक्ति अपनी झलक देख सकता है।  For oder fill fill the link below मेरी गूँज (गुंजन राजपूत) Meri goonj written by Gunjan Rajput

अलंकार

 अलंकार की परिभाषा  अलंकार का शाब्दिक अर्थ होता है- आभूषण। जिस प्रकार किसी व्यक्ति की शोभा उसके धारण किए हुए आभूषणों से होती है उसी प्रकार किसी भी काव्य की शोभा काव्य द्वारा धारण किए हुए आभूषणों से होती है।  अर्थात् इसे दूसरे शब्दों में ऐसे समझ सकते हैं कि भाषा में पदों की तथा अर्थों की सुंदरता बढ़ाने वाले साधन को अलंकार कहते हैं। अथवा शब्दों अथवा अर्थों को अलंकृत करने वाली वस्तु अलंकार कहलाती है।  अलंकार के भेद  अलंकार के दो भेद होते हैं - (i) शब्दालंकार  (ii) अर्थालंकार  किंतु कुछ व्याकरण वेत्ताओं ने अलंकार  के तीन भेद माने हैं- (i) शब्दालंकार  (ii) अर्थालंकार  (iii) उभयालंकार शब्दालंकार - जिस अलंकार से शब्दों के माध्यम से काव्य पदों का सौंदर्य उत्पन्न होता है अथवा काव्य को पढ़ने तथा सुनने में चमत्कार होता है उसे शब्दालंकार कहते हैं। शब्दालंकार की पहचान करने में काव्य के अर्थ का महत्त्व नहीं होता।  शब्दालंकार के भेद-  शब्दालंकार के मुख्य रूप से 3 भेद होते हैं-  (i) अनुप्रास अलंकार  (ii) यमक अलंकार  (iii) श्लेष अलंकार  1- अनुप्रास अलंकार  जहाँ काव्य में वर्णों की आवृत्ति से चमत्कार उत

हम सभी किताबें हैं

हम सभी हैं किताबें किताबें, ढेरों पन्नों को खुद में संजोए हुए कुछ खुले पन्ने तो कुछ के बीज मन में बोए हुए हम हैं किताबें मगर पाठक भी हैं हममें हैं ढेरों किस्से, भिन्न लिखावट भी है कुछ पन्नों पर गहरी स्याही से लिखे हैं हमारे गम, हमारे डर, हमारी खामोशी की वजह कुछ पर स्याही उड़ने लगी है लेकर हमारी मुस्कुराहट और सुहानी सुबह कुछ खाली पन्ने लिए हम सभी इंतज़ार में हैं हमें पढ़कर समझ सके कोई उसके इश्तेहार में हैं कोई लेकर अपनी स्याही में खुशियों के रंग बिखेर दे कुछ पन्नों पर अपने पन्नों के संग हम सभी हैं किताबें हमें खुद को पढ़ना है, हर पन्ने पर अपनी मर्ज़ी का हर्फ़ लिखना है हम सभी हैं किताबें ये याद रखना है

हम आगे बढ़ते जाते हैं

पिछली कक्षा से लेकर सीख  फिर कुछ नया सीखने आते हैं  इतनी ख़ुशी, इतनी उमंग  खूब उत्साह दिखाते हैं  गिरते हैं - उठते हैं  हम आगे बढ़ते जाते हैं  हम आगे बढ़ते जाते हैं  अब नई कक्षा होगी, नए दोस्त बनाएँगे  कभी साथ खेलेंगे, तो कभी रूठ जाएँगे  कक्षा में चलो रोज़ नए करतब दिखाते हैं  गिरते हैं - उठते हैं  हम आगे बढ़ते जाते हैं  हम आगे बढ़ते जाते हैं  नई-नई किताबें, नई कॉपियाँ भी लाए हैं  हम रोज़ नए-नए प्रयास करने आये हैं  खुद सीखकर हम दोस्तों को भी सिखाते हैं  गिरते हैं - उठते हैं  हम आगे बढ़ते जाते हैं  हम आगे बढ़ते जाते हैं  नए सत्र की शुरुआत में हम सब एक वादा करेंगे  इस बार पिछली बार से पढ़ाई थोड़ी ज़्यादा करेंगे  एक दूसरे की मदद कर सबको साथ चलाते हैं  गिरते हैं - उठते हैं  हम आगे बढ़ते जाते हैं  हम आगे बढ़ते जाते हैं IG- poetry_by_heartt my website twitter linkedin

धरती का बचाव

धरती का बचाव       धरती में भरा हुआ है रत्नों का खजाना     हमारा दायित्व है इस धरती को बचाना। I         फूल और पत्तों में कहीं सुगंध     तो कहीं औषधि मिलती है।     चोट लगने पर लेप मलने से     चेहरे पर मुस्कुराहट खिलती है।     सुंदर फूलों से हमें जीवन को है महकाना     हमारा दायित्व है इस धरती को बचाना।         नदियों की कलकल , झरनों की झर-झर     हमें मधुर ध्वनि सुनाते हैं।     सुबह-सवेरे पंछी आकर     यहाँ झीलों का पानी पी जाते हैं।     सींच-सींच कर किसान देखता है     धरती पर फसलों का लहलहाना     हमारा दायित्व है इस धरती को बचाना।         जाने कितने अपशिष्टों को धरती खुद में समाती है     गर्भ में बीज तपाकर सोने की किंकणियाँ लुटाती है     पर्यावरण हो सुरक्षित तो वर्षा समय पर आती - जाती है     कहीं न सूखा , कहीं न बाढ़ , प्रकृति सब समय पर लाती है     स्वराष्ट्र के साथ-साथ पूरा विश्व हमें है हरा बनाना     हमारा दायित्व है इस धरती को बचाना।    

प्यारी पतंग कविता। मकर संक्रांति।

प्यारी पतंग  सुंदर-सुंदर, प्यारी-प्यारी  पतंग तुम्हारी, पतंग हमारी  अभी डोर बाँध इठलाएँगी  घूमेंगी गगन में न्यारी-न्यारी ध्यान देना कहीं कट न जाए  सब कर रहे काई पो चे की तैयारी  जब तक सुरक्षित उड़ रही  होगी सिर्फ तुम्हारी ज़िम्मेदारी 

कृष्ण जन्माष्टमी। Krishn janmashtami।

  शुभ  कृष्णाष्टमी/ कृष्ण जन्माष्टमी  जब रात्रि पर घने तिमिर का घेरा था जब सैनिक खड़े माँ देवकी के द्वारे थे जब वारि ले घन उमड़-उमड़ के आये तब भारत-मही में योगिराज कृष्ण पधारे थे जब पापियों का चहुँ ओर बोलबाला था रिश्तों को स्वार्थों के पलड़े तौला जाता था जब वासुदेव सात संतानों की रक्षा में हारे थे तब भारत-मही में आठवीं संतान कृष्ण पधारे थे जब द्वापर के अंत होने में कुछ समय बचा था जब धर्म को छिपा कर हर तरफ अधर्म रचा था जब कंस जरासंध के अत्यचारों से तंग बंधुजन हमारे थे तब इसी भारत-मही में योगिराज कृष्ण पधारे थे सभी को योगिराज श्री कृष्ण के जन्मोत्सव के पावन पर्व की अनेकों शुभकामनाएँ...शुभ कृष्ण जन्माष्टमी