क्या बोलना मना है?
क्या बोलना मना है?
हाँ???? क्या बोलना मना है?
बोलना मना है या फिर.......
उस जगह
हाँ उस जगह.....
जहाँ तुम बोल रहे हो
अपना दिल खोल रहे हो
बोल-बोलकर ही
अपना दिल टटोल रहे हो
वहाँ बोलना मना है
हाँ वहाँ बोलना मना है
हाँ वहाँ बोलना मना है
वो बहुत अच्छा है
तुम्हारे साथ बहुत सच्चा है
लेकिन तुम्हें पूरी तरह समझने में
तुम्हें तुम्हारा पूरा अस्तित्व देने में
अभी वो कच्चा है
ना वो नासमझ है
ना ही वो बच्चा है
तो क्या करें.....
तो फिर क्या करें
थोड़ा सहते रहें???
ख़ुद का दर्द
ख़ुद ही कहते रहें???
या फिर....
या फिर समय की जो धारा है
ये जो नाज़ुक सा रिश्ता हमारा है
जो हमें सबसे अजीज़ सबसे प्यारा है
उसके साथ, समय के साथ बस
यूँ ही बहते रहें???
अगर बस यूँ ही बहते रहे
तो भी बड़ी परेशानी होगी
हमारे साथ बहने में
आँसुओं के बहने की भी कहानी होगी
और जो ये कुछ पल की मिली है
वो कैसी उदासी भरी ज़िंदगानी होगी
तो फिर.......
तो क्या करना होगा?
सहना होगा? या डरना होगा?
ऐसे ही ज़िंदगी से मरना होगा?
तो क्या करना होगा?
क्या मौन रहने की आदत अपनाकर
ज़िंदगी बिताई जाए
कोई पूछे तो हँस कर, मुस्कुरा कर
ज़िंदगी हसीन बताई जाए
ख़ुद के हाथों ही ये कीमती
ज़िन्दगी सताई जाए
नहीं.......
नहीं.... नहीं ये मुझे मंज़ूर नहीं
हमें ख़ुद के दर्द और ख़ुशियों की
ज़िम्मेदारी ख़ुद लेनी होगी
कुछ क़ुर्बानी अगर पड़े देनी
तो फिर देनी होगी
वो बच्चे नहीं है
उन्हें सब पता है
माफ़ करना, ख्वाहिश रखना
भी कई बार ख़ता है
और अगर तुम कहते हो.....
अगर तुम कहते हो
तो चलो मान लेती हूँ
उन्हें एक बार और नासमझ जान लेती हूँ
लेकिन इस नासमझी को
मैं कब तक मान नज़र अंदाज़ कर पाऊँगी
मैं यूँ ही मानते-मानते एक दिन मर जाऊँगी
तुम कहते हो-
वो अच्छे हैं
वो अच्छे हैं न?????
तुम कहते हो-
वो सच्चे हैं
वो सच्चे हैं न
तो मैं कहती हूँ
उन्हें अब समझना होगा
अब थोड़ी समझ ले
उन्हें बदलना होगा
वो चाहें तो रह सकते हैं
अकेले दीवारों में या घिरे बाजारों में
लेकिन मेरे साथ चलने के लिए उन्हें भी कुछ चलना होगा
अगर अब भी कहा चुप होने को
तो फिर मेरा सवाल वही है
क्या बोलना मना है
या यहाँ बोलना मना है
या बोलना ही मना है
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